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समय से परे मैं सोच रहा
जीवन से परे मैं सोच रहा..
शरीर विहीन परिचय मेरा..
परिचय से परे मैं सोच रहा..
हर क्षण मेरा पुलकित करके
अरविन्द मेरे तुम ऐसे खिले ..
पारुल संग तुम निश्चल मन से..
मेरा व्यक्तित्व सँभाल चले..
करके आह्वान लकीरों का ..
मेरे आशुतोष तुम अभय रहे..
लाकर स्वाति इस जीवन में...
उज्जवल भविष्य की ओर चले..
असीम मेरे तुम ऐसे मिले ..
जैसे सबका मन मोह लिए..
सागर अथाह तुम शांत भाव..
मेरी रेनू की मुस्कान धरे...
सपनों की थामे डोर बड़ी..
अभिषेक मेरे तुम अडिग रहे ..
स्वागत कर पूजा का जीवन में..
सपने अपने साकार करो..
आत्म रूप मैं सोच रहा..
धरा स्वरुप शची तुम कैसी..
ममता मूर्ती , अंजनी जैसी..
आँचल में समेटे मेरे जीवन कण को
हर क्षण को जीवनदान दिया...!