एक स्याह प्रतिबिंब बन कर ...
तुमसे जुड़ के भी जुदा हो कर ....
तुम्हें देखती हैं परछाईं...
घने अंधेरों में समाँ कर..
उजालों में करीब आकर..
रौशनी का एहसान दिलाती है परछाईं..
समेटे तुम्हें तुझमें....
हर आकार का विकार...
कर दिखाती है परछाईं...
अंतर्मन के द्वन्द से घिरे...
इस नश्वर शरीर को..
आइना दिखाती है परछाईं...
एक स्याह प्रतिबिम्ब बन कर ..
तुमसे जुड़ के भी जुदा हो कर ..
तुम्हें देखती है परछाईं ...!
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पूजा