इस क़दर तुमसे कोई शिकायत तो न की ,
कि मेरी उम्मीदों को कोई ठिकाना न मिले
इस तरह तुमसे कोई हिमाकत तो न की ,
की मेरी वफाओं को कोई सिला न मिले
जिससे रूबरू किया , साथ उसको लिया ,
किसी की कोई वकालत तो न की,
पर ऐसे क्योँ मुँह मोड़ लिया,
जैसे साथ रहने की वजह ही न थी
फिर भी हर वक़्त चलते ही रहे हम ,
कि तुमने पशेमाँ करने में कोई कमी भी न की !!
तुम शायद हँसते हो मुझ पे ,
की मैंने कभी कोई दुआ क्यों न की !!
कि मेरी उम्मीदों को कोई ठिकाना न मिले
इस तरह तुमसे कोई हिमाकत तो न की ,
की मेरी वफाओं को कोई सिला न मिले
जिससे रूबरू किया , साथ उसको लिया ,
किसी की कोई वकालत तो न की,
पर ऐसे क्योँ मुँह मोड़ लिया,
जैसे साथ रहने की वजह ही न थी
फिर भी हर वक़्त चलते ही रहे हम ,
कि तुमने पशेमाँ करने में कोई कमी भी न की !!
तुम शायद हँसते हो मुझ पे ,
की मैंने कभी कोई दुआ क्यों न की !!