थिरक थिरक...चंचल चंचल..
मन था अविचल.. अब विचल विचल..
कर के गुंजन... अंतर मंथन ...
मन में स्थित कंचन वंजन..
सब रूप सजे ..मन मोह भये..
मन मोह भये..मध्हम मध्हम...
सब हार दियो ..स्वीकार कियो..
कर मन अर्पण ..ये जान लियो..
ये काया काल को अर्पित है..
पर मन तुमको ही समर्पित है..
हर क्षण पुलकित...हर कण पुलकित..
स्नेह सरित अविरल अविरल...!!