कितनी हैं मंजिलें..
मिले पल दो पल ..
और हँस के चल दिए..
यही फलसफा है ज़िन्दगी..
कड़ी से कड़ी जोड़ के हम जिए ..
की सांसें मेरी बड़ी बिंदास हैं..
चलें हर घडी न परवाह किये...
कभी सोच कर ऐसा लगता है क्योँ..
की सांसें मेरी मुझसे आगे चलें....
मैं मदमस्त हो के चलूँ बेखबर..
पकड़ करके यूँ तेरा दामन लिए...
तेरे साए में लिपटी ऐसी रहूँ..
की में हूँ या तू.. कबके भूला किये ...
hmmmm gud1 again...
ReplyDeleteThank you so very much !!
Deletenice blog
ReplyDelete-Megha
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Thank you Megha ...
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