सूरत देखी , मूरत देखी
जुल्फें देखी , आँखें देखी
सीरत न दिखी तो क्या देखा... ?
महफ़िल देखी, मस्ती देखी,
अनजानों की हस्ती देखी
गैरों की उस बस्ती मैं
अपना न दिखा तो क्या देखा ...?
कारवां देखे , बस्तियां देखी
शहरों की गलियाँ देखी
और महलों के उन रस्तों पर
अपने घर का रास्ता न दिखा तो क्या देखा..?
दूरी देखी, राहें देखी
कुछ सपनो की आहें देखी
उन बिखरी सी आशाओं मैं
मंजिल का नाम-ओ-निशां न दिखा तो क्या देखा..?
No comments:
Post a Comment