अगर मेरे सपने कुछ खास नहीं होते ..
ज़िन्दगी की उड़ान में .. मेरे साथ नहीं होते..
कब के थक जाते ..मेरे पाँव चलते चलते ..
समय की रेत पे कुछ निशाँ नहीं होते ...
..जो न थामते हाथ आरज़ू के..
कैसे हर मंज़र पे मुहर लगाते
और न चूमते जो हर फासले को...
कैसे क़िस्मत को आज़माते....
जो न रोकते किसी को...
तो जाने का ग़म भी न मानते ...
अगर ग़म न मानते ..
तो उसके होने का सबब न जान पाते...
औरों में जो जीते ...औरों में मर जाते ..
तमाम उम्र जीते... फिर भी न जी पाते ..
अक्स जो अपना ढूंढते किसी में ..
वक़्त के हर पहलू को...कैसे आईना बनाते..
अगर मेरे सपने कुछ खास नहीं होते..
मेरे हल पल का जवाब नहीं होते ...!
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