Wednesday, June 8, 2011

अगर मेरे सपने कुछ खास नहीं होते ..


अगर मेरे सपने कुछ खास नहीं होते ..
ज़िन्दगी की उड़ान में .. मेरे साथ नहीं होते..
कब के  थक जाते ..मेरे पाँव चलते चलते ..
समय की रेत पे कुछ निशाँ नहीं होते   ...
..
जो न थामते हाथ आरज़ू के..
कैसे हर मंज़र पे मुहर लगाते
और न चूमते जो हर फासले को...
कैसे क़िस्मत को आज़माते....
 
जो न रोकते किसी को...
तो जाने का ग़म भी  न मानते ...
अगर ग़म न मानते ..
तो उसके होने का सबब न जान पाते...

औरों में जो जीते ...औरों में  मर जाते ..
तमाम उम्र जीते... फिर भी न जी पाते ..
अक्स जो अपना ढूंढते किसी में ..
वक़्त के हर पहलू को...कैसे आईना बनाते..

अगर मेरे सपने कुछ खास नहीं होते..
मेरे  हल पल का जवाब नहीं होते ...!

Wednesday, May 18, 2011

ख़ुद के होने का एहसास क्या होता है ...
छू के देखो तो कुछ और ही बयान होता है...
इस पिंजर में जान फूंकने से नहीं आती ...
जान होने का एहसास जुदा होता है ...
सँभाल के ख़ुद को तुम क्यों रखते हो ..
वक़्त के आगे तो जीना ही भरम होता है ...
पल पल जो बीता पल ये ..
गुज़रता है ... तुम पर से..
तो सदियाँ एक पल में 
सौ सौ बयान करता है .... 

Sunday, April 17, 2011

परछाईं ....



एक स्याह प्रतिबिंब बन कर ...
तुमसे जुड़  के भी जुदा हो कर ....
तुम्हें देखती हैं  परछाईं...

घने अंधेरों  में  समाँ कर..
उजालों  में करीब आकर..
रौशनी का  एहसान दिलाती है  परछाईं..

समेटे तुम्हें तुझमें....
हर आकार  का विकार...
कर दिखाती है परछाईं...

अंतर्मन के द्वन्द से घिरे...
इस नश्वर शरीर को..
आइना दिखाती है परछाईं...
 
एक स्याह प्रतिबिम्ब बन कर ..
तुमसे जुड़ के भी जुदा हो कर ..
तुम्हें देखती  है परछाईं ...!
.
पूजा 

Monday, January 24, 2011

मेरे जीवन कण....




show details 5:46 PM (2 hours ago)

समय से परे मैं सोच रहा
जीवन से परे मैं सोच रहा..
शरीर विहीन परिचय मेरा..
परिचय से परे मैं सोच रहा..

हर क्षण मेरा पुलकित करके
अरविन्द मेरे तुम ऐसे खिले ..
पारुल संग तुम निश्चल मन से..
मेरा व्यक्तित्व सँभाल चले..

करके आह्वान लकीरों का ..
मेरे आशुतोष तुम अभय रहे..
लाकर स्वाति इस जीवन में...
उज्जवल भविष्य की ओर चले..

असीम मेरे तुम ऐसे मिले ..
जैसे सबका मन मोह लिए..
सागर अथाह तुम शांत भाव..
मेरी रेनू की मुस्कान धरे...

सपनों की थामे डोर बड़ी..
अभिषेक मेरे तुम अडिग रहे ..
स्वागत कर पूजा का जीवन में..
सपने अपने साकार करो.. 

आत्म रूप मैं सोच रहा..
धरा स्वरुप शची तुम कैसी..
ममता मूर्ती ,  अंजनी जैसी..
आँचल में समेटे मेरे जीवन कण को 
हर क्षण  को जीवनदान दिया...!

Monday, December 27, 2010

स्नेह सरित ...!!

थिरक थिरक...चंचल चंचल..
मन था अविचल.. अब विचल विचल..
कर के गुंजन... अंतर मंथन ...
मन में स्थित कंचन वंजन..
सब रूप सजे  ..मन मोह भये..
मन मोह भये..मध्हम मध्हम...
सब हार दियो ..स्वीकार कियो..
कर मन अर्पण ..ये जान लियो..
ये काया काल को अर्पित है..
पर मन तुमको ही समर्पित है..
हर क्षण पुलकित...हर कण पुलकित.. 
स्नेह सरित अविरल अविरल...!!

Friday, December 10, 2010

बेफ़िक्री ..!

पूछो न  बिजली से तड़प का  सबब..
वो हँस के नशेमन  पे गिर जाएगी..
तो तामीर फिर से करो आशियाँ..
वरना जन्नत तुम्हारी बिखर जाएगी..

करना चाहो कभी  जो  हवाओं को क़ैद..
मुमकिन नहीं है  क़ि कर पाओगे..
क़ि सांसें भी बस में नहीं हैं जनाब..
आँधियों का रुख क्या बदल पाओगे ..

 खिलाता समंदर जो लहरों  पे अपनी..
  तो  कश्ती तुम्हारी चली जा रही..
न पतवार चाहे ..न मांझी  ही वो..
अपने किनारे वहीँ  पा रही..

किसी ख्वाब का पकड़ो दामन कभी..
इन नजारों को उनमें समेटो कभी ..
 बिजली का तड़पना समझ आएगा..
महके जो  खुशबू से शामियाना कभी..
हवाओं का फिरना  समझ आएगा..
किनारे पे चूमे जो आके क़दम...
ज़र्फ़ समंदर का तुमको समझ आएगा ..
क़ैद हो के कभी ख्वाब रहता नहीं ..
वरना मंज़िल  क़ि राहें वो चुनता नहीं ..
ये नज़ारे.. बेबाक़ नीयत के मारे...
 उनका बेफिक्र होना समझ आएगा ...!

बस यूँ ही....

एक ही रास्ता ..
कितनी हैं मंजिलें..
मिले पल दो पल ..
और हँस के चल दिए..
यही फलसफा है ज़िन्दगी..
कड़ी से कड़ी जोड़ के हम जिए ..
की सांसें मेरी बड़ी बिंदास हैं..
चलें हर घडी न परवाह किये...
कभी सोच कर ऐसा लगता है क्योँ..
की सांसें मेरी मुझसे आगे चलें....
मैं मदमस्त हो के चलूँ बेखबर..
पकड़ करके यूँ तेरा दामन लिए...
तेरे साए में लिपटी ऐसी रहूँ..
की में हूँ या तू.. कबके भूला किये ...