Wednesday, May 18, 2011

ख़ुद के होने का एहसास क्या होता है ...
छू के देखो तो कुछ और ही बयान होता है...
इस पिंजर में जान फूंकने से नहीं आती ...
जान होने का एहसास जुदा होता है ...
सँभाल के ख़ुद को तुम क्यों रखते हो ..
वक़्त के आगे तो जीना ही भरम होता है ...
पल पल जो बीता पल ये ..
गुज़रता है ... तुम पर से..
तो सदियाँ एक पल में 
सौ सौ बयान करता है ....