Friday, December 23, 2011

I choose…to Dare…




I choose to smile …when I open my eyes…after a nightlong nightmare …for I dared to dream anyway…
I choose to face the storm in the skies...after a long dreary day…for I dared to hope for the rains to stay...
I choose to take the new roads…and find my way…for I dared to whisk my fears away…
I choose to stand away from the maddening crowd…for I dared to believe in what I say…
I choose to mock the failures I had…for I dared to never give up…till the end of the day…
I choose to be …WHAT I AM…For I dared to challenge ..and live on the Edge ..every single day ..!!!

Thursday, December 22, 2011

उम्र दराज़ उनका साया बनके निकाली..
और उन्हें ये गिला की हम दो कदम साथ भी न चले..
उनमें इस कदर खोये की खुद को भूल गए..
और हमें ये गिला की भो हमें ढूँढने भी न चले..

Monday, November 28, 2011

A speck of grain..!!

Times when you are but a speck in a desert..
Lost and found like every other cohort...
Screeching silence kills every sound...
Till you remain nothing but a particle on a mound...!!

You sit there watching helplessly..
The caravans going past...
Dreams of yester years..
And the shadows they cast..

How long the winds will hold me..
If I do not fly...
Before long I should realize ..
My limit is the sky...

Come alive you speck of grain...
and stand tall where you sat hopeless..
Look around and you will find..
You just added the height to the mound nonetheless..!!


..












Thursday, September 29, 2011

कल रात एक सपने से बात हुई थी...

कल रात एक सपने से बात हुई थी...
नींद ही नींद में बेबाक़  हुई थी..
करवटों के बीच गुदगुदाता रहा...
मेरे तकिये के नीचे गुनगुनाता रहा..

थक के मैंने पूछा ..क्या तकलीफ है जनाब..
हँस के वो बोला...ये  ग़लत है रुआब...
मैं हूँ एक सपना .. रूठा तो बुरा होगा..
मैंने भी कहा ..जो भी  होगा मंज़ूर- ऐ- ख़ुदा होगा...

ख़ुदा का दम भरके ..सपनों से बचते हैं...
बहुत नादान   है आप जो ऐसा ख्याल रखते हैं..
कठपुतली ख़ुद  को समझ के..ख़ुदा का काम न बढाओ..
बक्श दो उन्हें..कुछ ख़ुद  भी तकलीफ उठाओ...

पर फिर एक और बात बताता हूँ...
मैं सिर्फ खुली आँखों से ही नज़र आता हूँ...
ग़र मुझे देखने की ख्वाहिश की है.. ...
समझो की क़ायनात ने कोई साजिश की है...

 थम जायेगा वो पल जब मुलाक़ात होगी...
दिल से निकली हुई कोई  फ़रियाद होगी ...
तड़प के तुम मुझे ..सिर्फ मुझे चाहोगे ..
मेरे साथ एक एक लम्हे की दरख्वास्त होगी...

कह के वो यूँ...  मुस्कुरा के गुम  हो गया...
रौशनी  में एक धुंधला सा  साया रह गया..
पर उस सुबह की कुछ बात और थी...
 कल रात एक सपने से बात हुई थी...



Wednesday, September 7, 2011

Nothingness.....!!


..I maybe a figment of imagination...
I maybe a shadow of the past...
I maybe the evil turned inside out..
I maybe the truth worn out...
I maybe the fierce will to live...
I maybe a desperate desire to die....
I maybe the smoke of the pyre...
I maybe the incense for the Higher...
I maybe the most ingenuous act...
I maybe an ingredient for defect...
I maybe the wisdom of seers..
I maybe the vice of peers...
I maybe the boundless joy...
I maybe a cause to annoy...
and I float through ages...timeless... boundless...untouched...unexplored...into nothingness.!!

Wednesday, June 8, 2011

अगर मेरे सपने कुछ खास नहीं होते ..


अगर मेरे सपने कुछ खास नहीं होते ..
ज़िन्दगी की उड़ान में .. मेरे साथ नहीं होते..
कब के  थक जाते ..मेरे पाँव चलते चलते ..
समय की रेत पे कुछ निशाँ नहीं होते   ...
..
जो न थामते हाथ आरज़ू के..
कैसे हर मंज़र पे मुहर लगाते
और न चूमते जो हर फासले को...
कैसे क़िस्मत को आज़माते....
 
जो न रोकते किसी को...
तो जाने का ग़म भी  न मानते ...
अगर ग़म न मानते ..
तो उसके होने का सबब न जान पाते...

औरों में जो जीते ...औरों में  मर जाते ..
तमाम उम्र जीते... फिर भी न जी पाते ..
अक्स जो अपना ढूंढते किसी में ..
वक़्त के हर पहलू को...कैसे आईना बनाते..

अगर मेरे सपने कुछ खास नहीं होते..
मेरे  हल पल का जवाब नहीं होते ...!

Wednesday, May 18, 2011

ख़ुद के होने का एहसास क्या होता है ...
छू के देखो तो कुछ और ही बयान होता है...
इस पिंजर में जान फूंकने से नहीं आती ...
जान होने का एहसास जुदा होता है ...
सँभाल के ख़ुद को तुम क्यों रखते हो ..
वक़्त के आगे तो जीना ही भरम होता है ...
पल पल जो बीता पल ये ..
गुज़रता है ... तुम पर से..
तो सदियाँ एक पल में 
सौ सौ बयान करता है .... 

Sunday, April 17, 2011

परछाईं ....



एक स्याह प्रतिबिंब बन कर ...
तुमसे जुड़  के भी जुदा हो कर ....
तुम्हें देखती हैं  परछाईं...

घने अंधेरों  में  समाँ कर..
उजालों  में करीब आकर..
रौशनी का  एहसान दिलाती है  परछाईं..

समेटे तुम्हें तुझमें....
हर आकार  का विकार...
कर दिखाती है परछाईं...

अंतर्मन के द्वन्द से घिरे...
इस नश्वर शरीर को..
आइना दिखाती है परछाईं...
 
एक स्याह प्रतिबिम्ब बन कर ..
तुमसे जुड़ के भी जुदा हो कर ..
तुम्हें देखती  है परछाईं ...!
.
पूजा 

Monday, January 24, 2011

मेरे जीवन कण....




show details 5:46 PM (2 hours ago)

समय से परे मैं सोच रहा
जीवन से परे मैं सोच रहा..
शरीर विहीन परिचय मेरा..
परिचय से परे मैं सोच रहा..

हर क्षण मेरा पुलकित करके
अरविन्द मेरे तुम ऐसे खिले ..
पारुल संग तुम निश्चल मन से..
मेरा व्यक्तित्व सँभाल चले..

करके आह्वान लकीरों का ..
मेरे आशुतोष तुम अभय रहे..
लाकर स्वाति इस जीवन में...
उज्जवल भविष्य की ओर चले..

असीम मेरे तुम ऐसे मिले ..
जैसे सबका मन मोह लिए..
सागर अथाह तुम शांत भाव..
मेरी रेनू की मुस्कान धरे...

सपनों की थामे डोर बड़ी..
अभिषेक मेरे तुम अडिग रहे ..
स्वागत कर पूजा का जीवन में..
सपने अपने साकार करो.. 

आत्म रूप मैं सोच रहा..
धरा स्वरुप शची तुम कैसी..
ममता मूर्ती ,  अंजनी जैसी..
आँचल में समेटे मेरे जीवन कण को 
हर क्षण  को जीवनदान दिया...!