Monday, December 27, 2010

स्नेह सरित ...!!

थिरक थिरक...चंचल चंचल..
मन था अविचल.. अब विचल विचल..
कर के गुंजन... अंतर मंथन ...
मन में स्थित कंचन वंजन..
सब रूप सजे  ..मन मोह भये..
मन मोह भये..मध्हम मध्हम...
सब हार दियो ..स्वीकार कियो..
कर मन अर्पण ..ये जान लियो..
ये काया काल को अर्पित है..
पर मन तुमको ही समर्पित है..
हर क्षण पुलकित...हर कण पुलकित.. 
स्नेह सरित अविरल अविरल...!!

Friday, December 10, 2010

बेफ़िक्री ..!

पूछो न  बिजली से तड़प का  सबब..
वो हँस के नशेमन  पे गिर जाएगी..
तो तामीर फिर से करो आशियाँ..
वरना जन्नत तुम्हारी बिखर जाएगी..

करना चाहो कभी  जो  हवाओं को क़ैद..
मुमकिन नहीं है  क़ि कर पाओगे..
क़ि सांसें भी बस में नहीं हैं जनाब..
आँधियों का रुख क्या बदल पाओगे ..

 खिलाता समंदर जो लहरों  पे अपनी..
  तो  कश्ती तुम्हारी चली जा रही..
न पतवार चाहे ..न मांझी  ही वो..
अपने किनारे वहीँ  पा रही..

किसी ख्वाब का पकड़ो दामन कभी..
इन नजारों को उनमें समेटो कभी ..
 बिजली का तड़पना समझ आएगा..
महके जो  खुशबू से शामियाना कभी..
हवाओं का फिरना  समझ आएगा..
किनारे पे चूमे जो आके क़दम...
ज़र्फ़ समंदर का तुमको समझ आएगा ..
क़ैद हो के कभी ख्वाब रहता नहीं ..
वरना मंज़िल  क़ि राहें वो चुनता नहीं ..
ये नज़ारे.. बेबाक़ नीयत के मारे...
 उनका बेफिक्र होना समझ आएगा ...!

बस यूँ ही....

एक ही रास्ता ..
कितनी हैं मंजिलें..
मिले पल दो पल ..
और हँस के चल दिए..
यही फलसफा है ज़िन्दगी..
कड़ी से कड़ी जोड़ के हम जिए ..
की सांसें मेरी बड़ी बिंदास हैं..
चलें हर घडी न परवाह किये...
कभी सोच कर ऐसा लगता है क्योँ..
की सांसें मेरी मुझसे आगे चलें....
मैं मदमस्त हो के चलूँ बेखबर..
पकड़ करके यूँ तेरा दामन लिए...
तेरे साए में लिपटी ऐसी रहूँ..
की में हूँ या तू.. कबके भूला किये ...


Wednesday, December 8, 2010

नज़र में तो नहीं .. .


देखें जो सब तरफ .. आईने तमाम हैं ..
कमाल ये के ...चेहरा हमें दिखता क्योँ नहीं ...!!
बढ़के जो आये हम तक.. कितने सलाम हैं ..
कमाल ये के.. वो कदरदान हमें दिखता क्योँ नहीं ..!!
इज़हार -ऐ- मोहब्बत ..वादा है सदियों का ...
कमाल ये के एक  पल भी  ... साथ टिकता क्योँ नहीं ..!!
हमराज़ ..हमसफ़र .. कहने की बात है..
एक हमजुबां ...बमुश्किल.. मिलता  क्योँ नहीं ..!!
ये शबाब ..ये महफ़िल... ये दिलकश  नज़ारे...
कोई  खामोश मंज़र ..बहकता क्योँ नहीं ...!!
साँसों की कड़ी ...उलझी है बड़ी...
मेरे जीने का सबब ... कोई समझता क्योँ नहीं !!


Friday, November 19, 2010

हम कुछ ऐसे जिए...

तस्सली से दिन को गुज़ारा किये..
रही रात उसको संवारा किये ..
की सपनों की महफ़िल सजाये हुए..
खामोशियों में नज़ारा किये...

फिज़ा में चमन को दुलारा किये ..
खिज़ा में भी उनको पुकारा किये ...
 नज़र भर के देखा किये एक बार..
सदा के लिए जुदा फिर किये ...

चलते  रहे यूँही इक राह पर...
बिना हमसफ़र की ख्वाहिश किये..
की चाहा सफ़र को कभी इस कदर..
बिना मंजिलों की गुज़ारिश किये ...
.
कैसे गुज़ारी है ये ज़िन्दगी..
कभी हँस के खुद से ही पूंछा किये ..
 की रख के हर पल का हिसाब 
ना हर पल को यूँही  हम ज़ाया किये...

भरी भीड़ में  जो मिले रु ब रु..
आइना उनको हम बनाया किये ..
देखा सभी में ख़ुदी को कभी...
कभी ख़ुद में सबको समाया किये ..

Tuesday, November 16, 2010

मेरे हम कदम !

निकले थे  दर से, पहचान साथ थी..
अनजाने सफर में , कुछ "आस " पास थी..
सपनों के साये , मन में समाये...
ख्वाहिशों से होती हर रोज़ बात थी ...
मंजिल कहाँ थी , न कोई पता था ..
कहीं रात होती , कहीं दिन उगा था....
वो भर के उमंगें, हर बार थे चले हम..
न कोई निराशा,  न डर साथ था.. 

जो कोई मिला , तो  बन के हमसफ़र..
कुछ दूर तो चला, होके बे खबर..
मुझे यूँ लगा , की होके हम कदम..
साथ में ये दूरी तै करेंगे हम ...

मुझे क्या पता , वो क्या बात थी...
अनजाने सफ़र में मुलाकात थी..
कुछ ऐसा लगा मंज़िल मिल गयी..
मुझे रु ब रु, ज़िन्दगी मिल गयी..

खोई मैं ऐसी , की सब भूल के ,
पता न चला , भरी धूल में..
 कब मुड़ गए कदम, उनके नए रास्तों पे...
जो हमसफ़र थे मेरे, मेरे रास्तों पे..

जहां तक नज़र थी, सूनसान  राह थी..
न कोई उमंग, न चाह साथ थी...
डूबती हर शाम, एक लम्बी रात थी..
तन्हाईयों से मेरी मुलाकात थी..

हर शाम को, बोझिल सी हुई मैं..
सिमट के खुदी में, खोई हुई मैं..
घनी रात अपने मन में दबाये ..
कोई आस  मन में न बोई हुई मैं..

हुई एक दस्तक,  कुछ अनजानी सी..
हुए रु ब रु , एक रूमानी सी..
सूरत जो देखी, पहचानी सी..
उस दीदार का ,हुआ न यकीं ..
 तस्वीर थी वी मेरे ख्वाब की ..

दामन में मेरे ही उलझा रहा..
मेरा हम कदम , बन के चलता रहा..
मेरा ख्वाब, मेरी उमंगों के साथ..
हरपल मुझे घेरे , कहता रहा..

मंजिल किसी हमसफ़र में नहीं..
सहारे किसी हमकदम में नहीं...
उमंगें तुम्हारी, तरंगें तुम्हारी...
ये एहसास किसी दूसरे में नहीं....

गुदगुदाया मुझे उसने ,एक बार फिर..
मिलाया  मुझे मुझसे एक बार फिर..
एक बार फिर से आरज़ू साथ थी..
निकले फिर दर से, पहचान साथ थी ! 

Friday, November 12, 2010

मोल..अनमोल...!

बहती है मंद मंद , वो मन को छू के जाती है 
बवंडरो से सबको ,समेटे ही ले जाती है..
घेरे खड़े हमें वो , एहसास यूँ दिलाती
देती है प्राण सबको ... मोल उसका कुछ नहीं ! 
 
पहाड़ों के झरोखों से, कल कल वो बहता रहता
इठलाता बलखाता , मद मस्त कहता रहता
संचित करूँ मैं जीवन धरा के कण कण में..
सींचे जो सूखी आशा ...मोल उसका कुछ नहीं !

धीरे से गुनगुना के , सवेरे को वो जगाये
भर दे उजालो से ,  मेरे मन  के  सारे साये 
जूझ के अंधेरों से, झिलमिल वो मुस्कोराए.
.हर दिन मुझे  नया दे ..मोल उसका कुछ नहीं !

ऊँचाइयों से ऊँचा , हमें छेड़ता वो रहता 
आदि न अंत उसका , हर सू ही फैला  दिखता
आँचल अपने दोनों रात दिन समेटे रहता 
सतरंगी सपने लपेटे हरपल.. मोल उसका कुछ नहीं !











क्या देखा....???

सूरत देखी , मूरत देखी 
जुल्फें देखी , आँखें देखी
सीरत न दिखी तो क्या देखा... ?

महफ़िल देखी, मस्ती देखी,
अनजानों की हस्ती देखी 
गैरों की उस बस्ती मैं
अपना न दिखा तो क्या देखा ...?

कारवां देखे , बस्तियां देखी 
शहरों की गलियाँ देखी
और महलों के उन रस्तों पर
अपने घर का रास्ता न दिखा तो क्या देखा..?

दूरी देखी, राहें देखी 
कुछ सपनो की आहें देखी
उन बिखरी सी आशाओं मैं 
मंजिल का नाम-ओ-निशां न दिखा तो क्या देखा..?

Random...

कह रहा है शोर-ऐ-दरिया से समुंदर का सुकूं..
जिसमे जितना ज़र्फ़ है , वो उतना ही ख़ामोश 


समुंदर को पाना ही ..दरिया की मंजिल है..
खुद को भूल जाना ही , दरिया की मंजिल है..
इसमें जो सुकून है ..वो किसी और मैं नहीं.
अपने मुक्कद्दर पे फ़ना हो जाना ही दरिया की मजिल है


 ज़िन्दगी के नजराने को फना हो के ही पाते हैं.
.क़यामत के दामन में ही ख्वाब मुस्कुराते हैं..
कोई तो चलके अनजान सफ़र पे..
सबके लिए जन्नत के रास्ते छोड़ जाते हैं .

मुक़द्दर के गुलाम तो नहीं..
अपनी सपनो से पहचान बनाते हैं..
पर ज़िन्दगी का कोई ईमान भी तो नहीं..
कभी कभी मुक़द्दर को सलाम कर जाते हैं .

किसी को तो खोजती थी उनकी नज़रें...
समझ के हमसफ़र की तलाश ...
हम रूबरू हुए..पर टिक कर ज़रा देर ...
वो हमें मील का पत्थर समझ..रुखसत हुए

मेरी मज़ार पे आ के आंसूँ न बहाना..
के हँस के गुजारी है मैंने ज़िन्दगी..
मेरी जान जाने का ग़म न मनाना..
के चैन से सो रही है..मेरे पहलू में ज़िन्दगी.

Monday, November 1, 2010

Main Kahan.....?

Kabhi chupti chupati si...
Khud main gungunati si ..
Sapno ke saye si..
Apne se parayi si...
Main  kahaan soo gayee...?

Bargad ke ped si..
Kheton ki med si..
Jangal ke phool si..
Anjani bhool si ...
Main kahan bo gayee...?

Paani ki dhaar si..
Naav ki patwaar si...
Boondoon ki barsaat  si...
Ek ankahi baat si..
Main kahaan reh gayee..

Holi ke rangoon si..
Manchali umangoon si..
Deepawali ki rangoli si
Aashaoon ki toli si..
Main khaan bikhar gayee...?

Hoton ki muskan si..
Zindagi ke armaan si...
Sapnoo ki udan si..
Apni  pehchaan si..
Mein kahan kho gayee...?

लम्हों का फेर...!

चाँद को देखा तो ...
दिन को भुला दिया..
सुबह को देखा तो...
रात को  झुठला दिया...
दिन की  तकदीर में ..
रात का मुक़द्दर है...
सितारों से क्या शिकवा ..
उन्होनें सो के दिन को जगा दिया..
आपने जो रात के साए में..
सपनों को देखा था..
दिन के उजाले ने उन्हें सजा दिया..
इस रात और दिन में..
बस लम्हों क फेर  है..
बस यूँ सोचिये क़ि ..
चंद घड़ियों क़ि देर है..
क़ि फासलों को देखा ..तो मंज़िल को भुला दिया..
और मंजिलों को चाहा तो फासलों को मिटा दिया..!!

Sapnon ka mahal...

Mitti ka ya ret ka...
Par sapna to hai ...
Samandar ke kinare ...
Koi apna to hai ...

Abhi rooh mein quaid hai ..
Umeendon ke saath...
Zarre zarre mein sama jayega ..
Lehron ke saath...

Aaj tumhare mann mein hai..
Jeevan ke har kshan mein hai...
Kal har jagah hoga ..
Prakriti ke har kan nein hoga...

Wednesday, October 27, 2010

Manzil abhi door hai....

Manzil ki talaash mein chalte to hain...
Sapno ki udaan bharte to hain...
Aarzoo bhi bahut hain magar....
Koi aas bandhati to nahin...

Bas aankhoon mein zara namee si hai...
Dil mein kuch kamee si hai...
Sapno ki dastak ki aahat to hai...
Mann mein ek aas dabee si hai...

Lamha der lamha simat ta sa hai..
Ye waqt behisaab guzarta sa hai...
Chale aye hain badi door se yahaan...
Par ab har kadam thithakta sa hai...

The Power Within......

Flower is beautiful..
But for itself..
Trees are lush...
But for themselves...
Sun shines for the cosmos..
..but its burning inside...
The Earth..so strong for lives...
..but melts deep within...
Can't you see a purpose in it ?
Shake yourself..
Think clearly...
..is it  late ..or yet so early..
...to realise the Power within....
to burn inside ..to melt within...
...Be one with the sun..
..Be one with the moon...
...Be one with the earth..and very soon...
You realise...
        ....  The Power Within..!!

Tuesday, October 26, 2010

Colours of life...

The picturesque scene of the setting sun..
Struck my eyes..
As I looked out...filled with surprise..
The silhouette of the cloud,
like a huge mountain...
The silver lining , made it breathtaking for certain...
The sky is a canvas...
the clouds splattered like the blobs of rainbow paint.
Who can be the painter...?
Not the inventor of the human art...
..but the creator of the human heart...!

Our happiness too,
..is smeared on the canvas of life..
A painting of each moment..
..today & tomorrow...
rich hues of  love and joy..

Who knows that one day..
All the colours of life...will fade..
Leaving the canvas...white ..stark white..
Breathtaking like moonlight..
..On a still limpid lake ...
..By a single stroke of fate ....!!

Why Life ...?

Life, it seems... has some purpose..
Then why many... vanish into oblivion..?
No difference they make ..to the living or to the dead ;
Leaving no trail behind, no road ahead.

Life, it seems.. is so bountious..
Then why many souls..starve to death ..
Starved of love... starved of faith ..?

Life, it seems is a beautiful gift..
Then why many souls..are not worthy of it ?

Life , it seems..is a secret...
Unfolding with time...line by line...
starkness of truth..
Staring down upon us,
How many souls, relish the meaning..
Life seems to hold , without concealing..
"Life".. they say," is living the present."
'Living', they say, where existence is threatened...
When life pays is debt...to the visitor called..Death !