Sunday, December 14, 2014

मेरा मन मकान !!

 कितनी गालियाँ, कितने मकान
कितने दरिया, कितने मचान
होकर चला ये मन मेरा

किसी चौराहे एक लम्हा छोड़ा
किसी दरवाज़े एक ख्वाब
किसी खिड़की से चाहत झांके
मुझे करने को अलविदा

कहीं आस का कतरा कतरा
पड़ा गली चौबारे
खींच शरीर को मैं यूँ अपने
घूमूं द्वारे द्वारे।

जैसे हो खाली हर मकान
बस ईंटों की हो दीवार
खिड़की ताक रही वीराना
खोले पट खड़ा वो शांत
चाह रौशनी की लेकर
आत्म विहीन मेरा मन मकान !!

Monday, May 26, 2014

दुआ क्यों न की !!

इस क़दर तुमसे कोई शिकायत तो न की ,
कि मेरी उम्मीदों को कोई ठिकाना न मिले
इस तरह तुमसे कोई हिमाकत तो न की ,
की मेरी वफाओं को कोई सिला न मिले
जिससे रूबरू किया , साथ उसको लिया ,
किसी की कोई वकालत तो  न की,
पर ऐसे क्योँ मुँह मोड़ लिया,
जैसे साथ रहने की  वजह ही न थी
फिर भी हर वक़्त चलते ही रहे  हम ,
कि  तुमने पशेमाँ करने में कोई कमी भी न की !!
तुम शायद  हँसते हो मुझ पे ,
की मैंने कभी कोई दुआ क्यों न की !!