Thursday, September 29, 2011

कल रात एक सपने से बात हुई थी...

कल रात एक सपने से बात हुई थी...
नींद ही नींद में बेबाक़  हुई थी..
करवटों के बीच गुदगुदाता रहा...
मेरे तकिये के नीचे गुनगुनाता रहा..

थक के मैंने पूछा ..क्या तकलीफ है जनाब..
हँस के वो बोला...ये  ग़लत है रुआब...
मैं हूँ एक सपना .. रूठा तो बुरा होगा..
मैंने भी कहा ..जो भी  होगा मंज़ूर- ऐ- ख़ुदा होगा...

ख़ुदा का दम भरके ..सपनों से बचते हैं...
बहुत नादान   है आप जो ऐसा ख्याल रखते हैं..
कठपुतली ख़ुद  को समझ के..ख़ुदा का काम न बढाओ..
बक्श दो उन्हें..कुछ ख़ुद  भी तकलीफ उठाओ...

पर फिर एक और बात बताता हूँ...
मैं सिर्फ खुली आँखों से ही नज़र आता हूँ...
ग़र मुझे देखने की ख्वाहिश की है.. ...
समझो की क़ायनात ने कोई साजिश की है...

 थम जायेगा वो पल जब मुलाक़ात होगी...
दिल से निकली हुई कोई  फ़रियाद होगी ...
तड़प के तुम मुझे ..सिर्फ मुझे चाहोगे ..
मेरे साथ एक एक लम्हे की दरख्वास्त होगी...

कह के वो यूँ...  मुस्कुरा के गुम  हो गया...
रौशनी  में एक धुंधला सा  साया रह गया..
पर उस सुबह की कुछ बात और थी...
 कल रात एक सपने से बात हुई थी...



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