Wednesday, July 27, 2016

सागर मंथन



ये मंथन है धर्मों का 
ये मंथन है कर्मों का 
जीवन का ये मंथन है 
ये मंथन है चरमों का 
ये मंथन इक्छाओं का है 
ये मंथन सीमाओं का है 
ये मंथन है सपनों का 
ये मंथन है अपनों का 
ये मंथन अन्तर्मन का है 
ये मंथन अन्तर्द्वन्द का है 
ये मंथन है आत्मा का 
ये मंथन है परमात्मा का
है ये मंथन  इस धृति का 
है ये मंथन प्रकृति का 
ये मंथन है  अमृत का 
और मंथन है उस विष का 
जिसने पान किया उस शिव का 
क्या तुम शिव बन पाओगे ?
उस विष को पी पाओगे?
बस अमृत का लोभ लिए तुम
मंथन को व्यर्थ कर जाओगे  ... 
मंथन को व्यर्थ कर जाओगे। 

No comments:

Post a Comment