Tuesday, November 16, 2010

मेरे हम कदम !

निकले थे  दर से, पहचान साथ थी..
अनजाने सफर में , कुछ "आस " पास थी..
सपनों के साये , मन में समाये...
ख्वाहिशों से होती हर रोज़ बात थी ...
मंजिल कहाँ थी , न कोई पता था ..
कहीं रात होती , कहीं दिन उगा था....
वो भर के उमंगें, हर बार थे चले हम..
न कोई निराशा,  न डर साथ था.. 

जो कोई मिला , तो  बन के हमसफ़र..
कुछ दूर तो चला, होके बे खबर..
मुझे यूँ लगा , की होके हम कदम..
साथ में ये दूरी तै करेंगे हम ...

मुझे क्या पता , वो क्या बात थी...
अनजाने सफ़र में मुलाकात थी..
कुछ ऐसा लगा मंज़िल मिल गयी..
मुझे रु ब रु, ज़िन्दगी मिल गयी..

खोई मैं ऐसी , की सब भूल के ,
पता न चला , भरी धूल में..
 कब मुड़ गए कदम, उनके नए रास्तों पे...
जो हमसफ़र थे मेरे, मेरे रास्तों पे..

जहां तक नज़र थी, सूनसान  राह थी..
न कोई उमंग, न चाह साथ थी...
डूबती हर शाम, एक लम्बी रात थी..
तन्हाईयों से मेरी मुलाकात थी..

हर शाम को, बोझिल सी हुई मैं..
सिमट के खुदी में, खोई हुई मैं..
घनी रात अपने मन में दबाये ..
कोई आस  मन में न बोई हुई मैं..

हुई एक दस्तक,  कुछ अनजानी सी..
हुए रु ब रु , एक रूमानी सी..
सूरत जो देखी, पहचानी सी..
उस दीदार का ,हुआ न यकीं ..
 तस्वीर थी वी मेरे ख्वाब की ..

दामन में मेरे ही उलझा रहा..
मेरा हम कदम , बन के चलता रहा..
मेरा ख्वाब, मेरी उमंगों के साथ..
हरपल मुझे घेरे , कहता रहा..

मंजिल किसी हमसफ़र में नहीं..
सहारे किसी हमकदम में नहीं...
उमंगें तुम्हारी, तरंगें तुम्हारी...
ये एहसास किसी दूसरे में नहीं....

गुदगुदाया मुझे उसने ,एक बार फिर..
मिलाया  मुझे मुझसे एक बार फिर..
एक बार फिर से आरज़ू साथ थी..
निकले फिर दर से, पहचान साथ थी ! 

2 comments:

  1. Its beautiful ... loved it....
    chand jawaab in khoobsoorat khyalon ke liye -

    इस अजनबी सी दुनिया में, अकेला इक ख्वाब हूँ
    सवालों से खफ़ा, चोट सा जवाब हूँ.
    जो ना समझ सके, उनके लिये "कौन".
    जो समझ चुके, उनके लिये किताब हूँ!

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  2. Thank you Vaibhav .... sorry for replying so late ...!!

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