Friday, November 19, 2010

हम कुछ ऐसे जिए...

तस्सली से दिन को गुज़ारा किये..
रही रात उसको संवारा किये ..
की सपनों की महफ़िल सजाये हुए..
खामोशियों में नज़ारा किये...

फिज़ा में चमन को दुलारा किये ..
खिज़ा में भी उनको पुकारा किये ...
 नज़र भर के देखा किये एक बार..
सदा के लिए जुदा फिर किये ...

चलते  रहे यूँही इक राह पर...
बिना हमसफ़र की ख्वाहिश किये..
की चाहा सफ़र को कभी इस कदर..
बिना मंजिलों की गुज़ारिश किये ...
.
कैसे गुज़ारी है ये ज़िन्दगी..
कभी हँस के खुद से ही पूंछा किये ..
 की रख के हर पल का हिसाब 
ना हर पल को यूँही  हम ज़ाया किये...

भरी भीड़ में  जो मिले रु ब रु..
आइना उनको हम बनाया किये ..
देखा सभी में ख़ुदी को कभी...
कभी ख़ुद में सबको समाया किये ..

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